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ग़ज़ल
यादों से बचना मुश्किल है उन को कैसे समझाएँ
हिज्र के इस सहरा तक हम को आते हैं समझाने लोग
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
तन्हाई सी तन्हाई है कैसे कहें कैसे समझाएँ
चश्म ओ लब-ओ-रुख़्सार की तह में रूहों के वीराने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ये ख़ुश्क क़लम बंजर काग़ज़ दिखलाएँ किसे समझाएँ क्या
हम फ़स्ल निराली काटते थे हम बीज अनोखे बोते थे
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
जिस से चाहें दिल को लगाएँ दुनिया वाले क्यूँ समझाएँ
इतनी बात तो सब ही जानें पीत किए दुख होता है