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ग़ज़ल
सर-ए-शाख़-सार गुलाब हैं ये जो ख़्वाब हैं
कभी ख़ार-ज़ार-ए-अज़ाब हैं ये जो ख़्वाब हैं
मोहम्मद फ़ीरोज़ शाह
ग़ज़ल
शाख़-ए-बुलंद-ए-बाम से इक दिन उतर के देख
अम्बार-ए-बर्ग-ओ-बार-ए-ख़िज़ाँ में बिखर के देख
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
काट कर दस्त-ए-दुआ को मेरे ख़ुश हो ले मगर
तू कहाँ आख़िर ये शाख़-ए-बे-समर ले जाएगा