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ग़ज़ल
मैं ख़ुद बशर हूँ बशर से है दोस्ती मेरी
मुझे तसव्वुर-ए-फ़ौक़-उल-बशर से क्या लेना
मोहम्मद शफ़ी सीतापूरी
ग़ज़ल
बाइ'स-ए-तस्कीन है 'वारिस' हर घड़ी मेरे लिए
मिदहत-ए-ख़ैर-उल-बशर महबूब-ए-रब्बानी की बात
वारिस रियाज़ी
ग़ज़ल
हमारी सादा-लौही थी ख़ुदा-बख़्शे कि ख़ुश-फ़हमी
कि हर इंसान की सूरत को मा-फ़ौक़-उल-बशर जाना
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार
सभी का चाक गिरेबाँ है देखिए क्या हो