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ग़ज़ल
ले के हरीम-ए-नाज़ उस के शीरीं शीरीं नग़्मों को
'दौराँ' की तौक़ीर बढ़ाए इंसाँ कितना प्यारा है
ओवेस अहमद दौराँ
ग़ज़ल
उस किसी चीज़ पे भूले से भी मचला न करे
मेरे 'दौराँ' दिल-ए-पुर-ख़ूँ को ये समझा देना
ओवेस अहमद दौराँ
ग़ज़ल
वो ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद गुलसिताँ का है सरबराह 'दौराँ'
जो वो चाहे सो करेगा उसे कौन रोकता है
ओवेस अहमद दौराँ
ग़ज़ल
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-हिज्राँ ग़म-ए-याराँ
ये सारे ग़म हमेशा मुझ से हम-आग़ोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
था बज़्म-ए-ग़ैर में जो वहाँ शग़्ल-ए-दौर-ए-जाम
दर्द-ए-जिगर का था यहाँ दौरा तमाम रात
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
हर शख़्स असीर-ए-ग़म-ए-दौराँ नहीं होता
हर अहल-ए-जुनूँ चाक-गरेबाँ नहीं होता