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ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
हम वो हैं आज 'रविश'-ए-साहब-ए-दीवान-ए-ग़ज़ल
ये सब उस चश्म-ए-सुख़न-गो का फ़ुसूँ है कि नहीं
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बेगमें शहज़ादियाँ फिरने लगीं ख़ाना-ख़राब
अब चुड़ैलें साहिबान-ए-क़स्र-ओ-दीवाँ हों तो क्या
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हल्क़ा-ए-साहब-ए-दिलाँ में तेरा 'अहक़र' नाम है
ये समझ ले चाक तेरा नामा-ए-इस्याँ हुआ
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र
ग़ज़ल
मुख़ातब होने लगती है ख़ुद अपनी ज़िंदगी मुझ से
'वली' जब भी मैं शरह-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिखता हूँ
वलीउल्लाह वली
ग़ज़ल
हमें कुछ इश्क़ के मफ़्हूम पर है तब्सिरा करना
इक आह-ए-सर्द को उनवान-ए-शरह-ए-ग़म बनाते हैं
दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
मुज़्मिर थे मेरी ज़ात में असरार-ए-काएनात
मैं आप राज़ आप ही ख़ुद शरह-ए-राज़ था
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
ख़ून-ए-हयात ख़ून-ए-तरब ख़ून-ए-आरज़ू
ये शरह-ए-मुख़्तसर मिरी उम्र-ए-वफ़ा की है