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ग़ज़ल
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
क्यूँ सिवल-सर्जन का आना रोकता है हम-नशीं
इस में है इक बात ऑनर की शिफ़ा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बक़ा-तलब थी ज़िंदगी शिफ़ा-तलब था ज़ख़्म-ए-दिल
फ़ना मगर लिखी गई है बाब-ए-इंदिमाल में