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ग़ज़ल
वाक़िफ़ भी नहीं था मैं किसी सूद-ओ-ज़ियाँ से
उस इश्क़ के सौदे में शिराकत भी नई थी
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ग़ज़ल
मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने
तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
जो है गर्दिशों ने घेरा, तो नसीब है वो मेरा
मुझे आप से शिकायत कभी थी न है न होगी