aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shu.uur-e-buland"
निगाह तेज़ शुऊ'र-ए-बुलंद रखते हैंहम अपना इश्क़ बहुत होश-मंद रखते हैं
'शुऊर' आ जाओ मेरे साथ, लेकिन!मैं इक भटका हुआ सा आदमी हूँ
उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों सेऔर फिर हो गई बाला-ओ-बुलंद आँखों से
'शु'ऊर' आ जाओ मेरे साथ लेकिनमैं इक भटका हुआ सा आदमी हूँ
कहता है यही तुम से 'शुऊर'-ए-जिगर-अफ़गारसौंपा है अगर दर्द तो दरमाँ की ख़बर लो
हम ऐ 'शुऊर' अकेले कभी नहीं होतेहमारे साथ हमारा ख़ुदा भी होता है
ऐ 'शुऊर' और कोई बात करोहैं ये क़िस्से सुने-सुनाए हुए
ऐ 'शुऊर' इस घर में इस भरे-पुरे घर मेंतुझ सा ज़िंदा-दिल तन्हा और इस क़दर तन्हा
ख़्वाब-आवर गोलियों से ऐ 'शुऊर'ख़ुद-कुशी की कोशिशें करता हूँ मैं
महरम-ए-ख़ास देखना सो तो नहीं गया 'शुऊर'देर हुई सुने हुए कोई नई सदा मुझे
मसअला बन गई छोटी सी बुराई ऐ 'शुऊर'क्या तकल्लुफ़ है भला और बुरा होने में
कोई सदमा नहीं उठता शुरू-ए-इश्क़ में ताहमब-तदरीज आदमी से सारे सदमात उठने लगते हैं
नशा किसी से भी ले लूँ 'शुऊर' आज मगरवो रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-महताब किस से लूँ
'शुऊर' इक दिन पेश होना पड़ेगाकहाँ तक बचोगे अज़ीज़-ए-मुकर्रम
क्या तिरी सादगी-ए-तब्अ नई शय है 'शुऊर'लोग चलते थे इसी ढब से बहुत दिन पहले
तुम ही ख़ुलूस-ए-दिल से आ जाते हो 'शुऊर' अबमिलता है कौन वर्ना बे-फ़ाएदा किसी से
ज़िंदगी में हर तरह के लोग मिलते हैं 'शुऊर'आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल ना-आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल
'शुऊर' आया हुआ बैठा है कब सेये बे-होशी ये ग़फ़लत ऐ दिल ऐ दिल
'अनवर-शुऊ'र' दिन में कहीं रात में कहींरहता है ख़्वार शहर-ए-ख़राबात में कहीं
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