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ग़ज़ल
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा'नी जान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
थोड़ी सी शोहरत भी मिली है थोड़ी सी बदनामी भी
मेरी सीरत में ऐ 'क़ैसर' ख़ूबी भी है ख़ामी भी
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
लिया जब नाम उल्फ़त का बदल जाती है सीरत भी
निगाह-ए-शर्म-आगीं में शरारत आ ही जाती है
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
रख क़दम साबित न छोड़ 'अकबर' सिरात-ए-मुस्तक़ीम
ख़ैर चल जाने दे उन की चाल देखा जाएगा