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ग़ज़ल
मेरी क़िस्मत में लिखे थे ये उन्हीं के आँसू
दिल के ज़ख़्मों को सिया है कोई अफ़्सोस नहीं
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
ख़य्यात ने क़ज़ा के जामा सिया जो मेरा
आया न जी में इतना क्या इस में जोड़ डालूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इलाज-ए-चाक-ए-पैराहन हुआ तो इस तरह होगा
सिया जाएगा काँटों से गरेबाँ हम न कहते थे
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
रोज़-ए-अज़ल से ता-ब-अबद अपनी जैब का
था एक चाक जिस को मैं बैठा सिया किया