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ग़ज़ल
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चलो अच्छा ही हुआ मुफ़्त लुटा दी ये जिंस
हम को मिलता सिला-ए-हुस्न-ए-नज़र ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
यहाँ शुऊ'र के नाख़ुन तो हम भी रखते हैं
मगर ये उक़्दा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र कहाँ खोलें
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
अजब शय है 'फ़ज़ा' ज़ेहन ओ नज़र की ये असीरी भी
मुसलसल देखते रहना बराबर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हर क़दम पर साथ मेरे लग़्ज़िशों की भीड़ थी
चश्म-ए-बालिग़ से उन्हें सर्फ़-ए-नज़र उस ने किया
सईद नज़र
ग़ज़ल
कैसे आशोब-ए-दानिश पे रखता नज़र मैं कम-आगाह था
दे गया मुझ को आँखों के बदले कोई बे-बसर आइने