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ग़ज़ल
बहुत ही सुस्त था मंज़र लहू के रंग लाने का
निशाँ आख़िर हुआ ये सुर्ख़-तर आहिस्ता आहिस्ता
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
किसी चश्म-ए-सियह का जब हुआ साबित मैं दीवाना
तो मुझ से सुस्त हाथी की तरह जंगली हिरन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
कहे सौ शेर तुम ने सुस्त तो हासिल 'हफ़ीज़' इस का
ग़ज़ल हो चुस्त छोटी सी तो बैतों की कमी अच्छी