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ग़ज़ल
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर
दोनों जहाँ नहीं मिरे क़ाबिल तिरे बग़ैर
नादिर शाहजहाँ पुरी
ग़ज़ल
गुज़र है कैसी फ़ज़ाओं से आज ताइर-ए-इश्क़
कि ज़ेर-ए-बाज़ू-ए-परवाज़ अब ख़ला भी नहीं
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
वुसअत-ए-आसमाँ सुब्ह-ए-परवाज़ का कोई मुज़्दा सुना
शाख़-ए-हसरत पे बैठे हुए ताइर-ए-बे-नवा के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
अपने अशआर का ऐ 'बर्क़' न क्यूँ शोहरा हो
साथ हैं ताइर-ए-मज़मूँ के उड़ाने वाले