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ग़ज़ल
वो क़फ़स हो कि नशेमन कि पनह-गाह नहीं
ताइरो नग़्मागरो बर्क़-ए-बला ताक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
मुख़्तार हाशमी
ग़ज़ल
फ़र्क़ ज़ाहिर है जो कुछ ताइर-ओ-इंसान में है
हो न फिर कब्क से क्यों यार की रफ़्तार जुदा
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है