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ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझ को ये होश ही न था तू मिरे बाज़ुओं में है
या'नी तुझे अभी तलक मैं ने रिहा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी
वही अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए