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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
गर हो तमंचा-बंद वो रश्क-ए-फ़िरंगियाँ
बाँके मुग़ल बचे न करें ख़ाना-जंगियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
तमाँचा बाग़ के रुख़्सार पर लगा किस का
कि ताएरों का भी रंग-ए-सुख़न शिकस्ता है