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ग़ज़ल
मैं इसी दम तिरी तरवार से काटूँगा गला
तेग़ दिखला के मियाँ आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से रम्ज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
वही है मर्द जो हो रू-ब-रू तरवार के 'हातिम'
कि मुँह के फेरते नामर्द पर शमशीर हँसती है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
म्याँ बोस अभी लूँगा धरी रहवेगी तरवार
गाली न सुना सब को तू यकसान समझ कर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
घाव कारी उछ न जाना जीव होर जम तल्खली
यूँ तो ख़ासियत दिस्या तुझ 'इश्क़ की तरवार का
क़ाज़ी महमूद बेहरी
ग़ज़ल
मक़्तल में जब वो क़ातिल तरवार ले के आया
कहने लगा हुज़ूर आ ले तू ही वार पहले
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है
कुश्ता हूँ मैं जिस का सो ये तरवार वही है
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ