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ग़ज़ल
चश्मक मिरी वहशत पे है क्या हज़रत-ए-नासेह
तर्ज़-ए-निगह-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-वफ़ा क्या जानें
कोई ना-शाद सिखा दे उन्हें नालाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है
मरज़ में मुब्तला कर के मरीज़ों को दवा देना
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हम ने जो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ की है क़फ़स में ईजाद
'फ़ैज़' गुलशन में वही तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है