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ग़ज़ल
हुस्न सर-ता-पा तमन्ना इश्क़ सर-ता-सर ग़ुरूर
इस का अंदाज़ा नियाज़-ओ-नाज़ से होता नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ना-ज़ोरी में आया न कभू ता-सर-ए-मिज़्गाँ
यक क़तरा-ए-ख़ूँ भी बुन-ए-मिज़्गाँ से निकल कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ढकी थी आतिश-ए-गुल ता-सर-ए-दीवार-ए-बाग़ अब के
ख़बर 'उज़लत' को नीं बुलबुल के ख़स-ख़ाना पे क्या गुज़रा
वली उज़लत
ग़ज़ल
ऐ शह-ए-इक़्लीम-ए-ख़ूबी ता-सर-ए-दरवाज़ा आ
नज़्र को 'बेदार' तेरी जाँ-ब-कफ़-आवर्दा है
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
ये किस की काविश-ए-मिज़्गाँ ने दिल से ता-सर-ए-चश्म
हज़ार चश्मा-ए-आब-ए-रवान खोल दिए
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
कौन उस वादी से उछला ता-सर-ए-अर्श-ए-बरीं
गुम हैं जिस वादी में 'अख़्तर' ख़िज़्र भी इल्यास भी
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
जादा पे चले जाते हैं जो रास्त क़दम हैं
ये ख़िज़्र जुदा ता-सर-ए-मंज़िल नहीं होता
अब्दुल हादी वफ़ा
ग़ज़ल
पाँव फैलाती हैं वो ता-सर-ए-दामाँ क्या क्या
नाज़ करते हैं मिरे चाक-ए-गरेबाँ क्या क्या
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए