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ग़ज़ल
उदास रात के गुदाज़ जिस्म को टटोल कर
किसी की ज़ुल्फ़-ए-साया-दार की गिरह में घर करो
महताब हैदर नक़वी
ग़ज़ल
दिल का शगूफ़ा उस गुल-ए-नाज़ुक से खिल गया
देखा ज़रा टटोल के पहलू से दिल गया
मुनव्वर जहाँ मुनव्वर
ग़ज़ल
कभी ख़याल के रिश्तों को भी टटोल के देख
मैं तुझ से दूर सही तुझ से कुछ जुदा भी नहीं