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ग़ज़ल
जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ
अँधेरी रात है काग़ज़ पे मैं तारे बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
उड़ते तय्यारे की खिड़की से ज़रा सा झाँक ले
इतने हंगामों-भरी दुनिया भी तन्हाई में है
ख़लील रामपुरी
ग़ज़ल
ग़ार की दीवारों से ले कर बॉलीवुड की फ़िल्मों तक
मुश्की घोड़े पर निकला था पहुँचा इक तय्यारे पर
आबिद रज़ा
ग़ज़ल
ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
हम कि जिन्हें तारे बोने थे हम कि जिन्हें सूरज थे उगाने
आस लिए बैठे हैं सहर की जलते दिए बुझा देने से