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ग़ज़ल
कहीं आबलों के भँवर बजें कहीं धूप-रूप बदन सजें
कभी दिल को थल का मिज़ाज दे कभी चश्म-ए-तर को चनाब कर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कहीं आबलों के भँवर बजें कहीं धूप-रूप बदन सजें
कभी दिल को थल का मिज़ाज दे कभी चश्म-ए-तर को चनाब कर