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ग़ज़ल
गले के साज़ पे ग़ज़लें थिरक रही हों जब
मैं फ़िल्मी गीत सुनाऊँ किसी के बाप का क्या
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
बदन के दफ़ पर लहू बहा ले दे रफ़्त रफ़तन थिरक रहा है
ये कौन नद्दाफ़ अंदर अंदर तमाम रूई धुनक रहा है
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी