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ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हम अपने शे'र में कुछ पहलू-ए-ज़म डाल देते हैं
कोई टोके तो ज़म में और भी दम डाल देते हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ताक़-ए-अबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई
अब तो पूजेंगे उसी काफ़िर के बुत-ख़ाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना