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ग़ज़ल
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
किसी और के तज्रबे से कोई फ़ाएदा क्या उठाएँ
मोहब्बत में हर तजरबा ही अलग तरह का तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
नक़ाब उधर वो उठाएँ इधर मैं आह करूँ
समंद-ए-हुस्न पे पड़ जाए ताज़ियाना-ए-इश्क़