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ग़ज़ल
बसान-ए-नक़्श-ए-पा-ए-रह-रवाँ कू-ए-तमन्ना में
नहीं उठने की ताक़त क्या करें लाचार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दिल गिर के नज़र से तिरी उठने का नहीं फिर
ये गिरने से पहले ही सँभल जाए तो अच्छा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मुफ़्त उठने के नहीं यार के कूचे से 'फ़क़ीर'
जब कि बिस्तर को जमा खोल कमर बैठ गए
मीर शम्सुद्दीन फ़क़ीर
ग़ज़ल
तेरी जानिब उठने वाली आँखों का रुख़ मोड़ लिया
हम ने अपने ऐब दिखाए तेरी पर्दा-दारी में
दानिश नक़वी
ग़ज़ल
पागल-पन तो देखो जिस दिन डोली उठने वाली थी
अपने हाथ से तोड़ दिया इक दुल्हन ने शहनाई को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
उस नज़र के उठने में उस नज़र के झुकने में
नग़मा-ए-सहर भी है आह-ए-सुब्ह-गाही भी