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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
दिल-ए-मर्द-ए-मुसलमाँ में किसी बुत का क़दम आया
मिरी दुनिया में तुम आए कि पत्थर का सनम आया
रियाज़त अली शाइक
ग़ज़ल
उम्र सारी तो कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अल्लाह रे सोज़-ए-आतिश-ए-ग़म बा'द-ए-मर्ग भी
उठते हैं मेरी ख़ाक से शो'ले हवा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ज़िक्र-ए-शराब-ओ-हूर कलाम-ए-ख़ुदा में देख
'मोमिन' मैं क्या कहूँ मुझे क्या याद आ गया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़