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ग़ज़ल
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
जिसे वादे से नफ़रत हो जिसे मिलने से आर आए
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
तेरी बख़्शिश है तो क्या गर्मी-ए-महशर से ख़तर
गोशा-ए-दामन-ए-रहमत है गुनहगार के हाथ
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
वुसअ'त-ए-दामन-ए-रहमत की क़सम खाता हूँ
उज़्र-ए-तक़्सीर भी दाख़िल-ए-हद-ए-तक़्सीर में है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
रंग-ए-शिकस्त क्यूँ न हो हाल-ए-उमीद-वार-ए-शब
तू ही तो इश्वा-गर हुआ बाइ'स-ए-इंतिशार-ए-शब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
हश्र के दिन भी गुनाहों से न हूँगा शर्मसार
मुँह छुपाने को मिलेगा दामन-ए-रहमत मुझे
नबीउल हसन शमीम
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल आप का शेवा सही मगर कुछ तो
ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-उम्मीद-वार होना था