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ग़ज़ल
नज़र का मिल के टकराना न तुम भूले न हम भूले
मोहब्बत का वो अफ़्साना न तुम भूले न हम भूले
कँवल डिबाइवी
ग़ज़ल
अहल-ए-तूफ़ाँ आओ दिल-वालों का अफ़्साना कहें
मौज को गेसू भँवर को चश्म-ए-जानाना कहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
पीना नहीं हराम, है ज़हर-ए-वफ़ा की शर्त
आओ उठा दें आज मय-ए-जाँ-फ़ज़ा की शर्त