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ग़ज़ल
मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
ये क्या कि एक दिल को शकेबा न कर सको
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रक़्स के वक़्फ़े में जब करने को था मैं अर्ज़-ए-शौक़
कोई उस को मेरे पहलू से उठा कर ले गया
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
तो फिर महशूर उन के साथ अपनी ज़िंदगी होती