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ग़ज़ल
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तुम्हें तो ज़ोहद-ओ-वरा पर बहुत है अपने ग़ुरूर
ख़ुदा है शैख़-जी हम भी गुनाहगारों का