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ग़ज़ल
दिलबरी हर बुल-हवस की हद सीं अफ़्ज़ूँ मत करो
मुफ़लिस-ए-बे-कद्र कूँ यक-पल में क़ारूँ मत करो
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
सब दस्त-ओ-पा-ए-अक़्ल कूँ यक पल में शल किया
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
धड़कन भी मुनहसिर है मिरी तेरी याद पर
चलता नहीं है ज़ोर दिल-ए-ना-मुराद पर