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ग़ज़ल
तिरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतिज़ार चली गई
मिरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मिरे ग़म-गुसार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
ता-कुजा ज़ब्त-ए-मोहब्बत ता-कुजा दर्द-ए-फ़िराक़
रहम कर मुझ पर कि तेरा राज़ कहलाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
उमीदें मिल गईं मिट्टी में दौर-ए-ज़ब्त-ए-आख़िर है
सदा-ए-ग़ैब बतला दे हमें हुक्म-ए-ख़ुदा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ना-आक़िबत-अंदेश ज़ब्त-ए-शौक़ कर
कौन ला सकता है ताब-ए-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो ज़ब्त-ए-सुख़न में लबों की ख़मोशी
नज़र का वो लुत्फ़-ए-कलाम अल्लाह अल्लाह
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
जब हर इक शोरिश-ए-ग़म ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ तक पहुँचे
फिर ख़ुदा जाने ये हंगामा कहाँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़
थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इस अंदेशे से ज़ब्त-ए-आह मैं करता रहूँ कब तक
कि मुग़-ज़ादे न ले जाएँ तिरी क़िस्मत की चिंगारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तू कुछ तो मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का सिला दे
हंगामा-ए-फ़ना दीदा-ए-पुर-नम की तरह आ