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ग़ज़ल
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा
जिस पर तेरा नाम लिखा है उस तारे को ढूँडूँगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
आबला-पा कोई गुज़रा था जो पिछले सन में
सुर्ख़ काँटों की बहार आई है अब के बन में
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
कितनी सरकश भी हो सर-फिरी ये हवा रखना रौशन दिया
रात जब तक रहे ऐ मिरे हम-नवा रखना रौशन दिया
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना
मिरे अँधेरों की फ़िक्र छोड़ो बस अपने घर का ख़याल रखना
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
मताअ'-ए-ज़र्फ़ होती तो क़द-आवर हो गए होते
तो फिर तुम भी मिरे क़द के बराबर हो गए होते
फ़ारूक़ ज़मन
ग़ज़ल
मैं वो हूँ जिस का ज़माने ने सबक़ याद किया
ग़म ने शागिर्द किया फिर मुझे उस्ताद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
दिल के हाथों से पड़े कैसी गिरफ़्तारी में हम