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ग़ज़ल
नहीं है कम ज़र-ए-ख़ालिस से ज़र्दी-ए-रुख़्सार
तुम अपने इश्क़ को ऐ 'ज़ौक़' कीमिया समझो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
शहर-ए-ख़िज़ाँ है ज़र्दी ओढ़े खड़े हैं पेड़
मंज़र मंज़र नज़र चुभोने वाला मैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
ये सिला पाया वफ़ा का हुस्न की सरकार से
चेहरा-ए-आशिक़ की ज़र्दी है ज़र-ए-इनआ'म-ए-इश्क़
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
तेरे रुख़ पर ज़र्दी छाई मैं अब तक मायूस नहीं
तेरी मंज़िल पास आ पहुँची मेरी मंज़िल दूर है चाँद
शबनम रूमानी
ग़ज़ल
बढ़ावा दे रहे हैं मुज़्महिल चेहरे की ज़र्दी को
तिरे जूड़े में ये ग़ुंचे बुरे मालूम होते हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
जो ये पूछे कि अब कितनी है उस के रंग पर ज़र्दी
तो यारो तुम गुल-ए-सद-बर्ग या काफ़ूर ले जाना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तारे कितने ही छिटकें जुगनू कितने ही चमकें
शम्अ' की ज़र्दी कहती है रात गए वो आएँगे
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
जाने हम पे क्या क्या बीती तन का लहू सब सर्फ़ हुआ
रुख़ की ज़र्दी भी है ग़नीमत अब तो अपनी यही पूँजी है