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ग़ज़ल
उसे अंजुमन मुबारक मुझे फ़िक्र-ओ-फ़न मुबारक
यही मेरा तख़्त-ए-ज़र्रीं यहीं मेरी मिर्ग-छाला
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
कौन पहचानेगा 'ज़र्रीं' मुझ को इतनी भीड़ में
मेरे चेहरे से वो अपनी हर निशानी ले गया
इफ़्फ़त ज़र्रीं
ग़ज़ल
मुर्ग़-ए-ज़र्रीन-ए-फ़लक पर है यक़ीन-ए-ख़ुफ़्फ़ाश
किस क़दर मेरे दिनों में हुईं सारी रातें
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
भूल जाता हूँ मैं जिस को देख कर हर ग़म 'शफ़ीअ''
मेरे अरमानों का वो ज़र्रीं गगन तुम ही तो हो
मोहम्मद शफ़ी सीतापूरी
ग़ज़ल
वो जो पल पल रहा मसरूफ़ कि मैं गिर जाऊँ
कैसे सह पाएगा 'ज़र्रीं' मिरी ता'मीर का दुख