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ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
वो रहीम है वो करीम है वो नहीं कि ज़ुल्म करे सदा
है यक़ीं ज़माने को देख कर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ बरतरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही लेकिन
वो देखा जाए कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म
क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए
अहमद फ़रहाद
ग़ज़ल
शैख़ और बहिश्त कितने तअ'ज्जुब की बात है
या-रब ये ज़ुल्म ख़ुल्द की आब-ओ-हवा के साथ