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ग़ज़ल
गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
क़स्में तो सारी हो चुकीं बाक़ी रही है अब
पीपल तले के भुतने की शैतान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सिर्फ़ शैतान ही न था मुंकिर-ए-तकरीम 'नदीम'
अर्श पर जितने फ़रिश्ते थे मिरी घात में थे