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ग़ज़ल
मुझ को हैरत है कि की उम्र बसर उस ने कहाँ
इस जहालत पे तो ने तुर्क न ताजीक है दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है