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ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
न राज़-ए-इब्तिदा समझो न राज़-ए-इंतिहा समझो
नज़र वालों तुम्हें करना है अब दुनिया में क्या समझो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
तुझी से इब्तिदा है तू ही इक दिन इंतिहा होगा
सदा-ए-साज़ होगी और न साज़-ए-बे-सदा होगा