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ग़ज़ल
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
कोई तो मूनिस रहेगा ऐ 'क़मर' शाम-ए-फ़िराक़
शम्अ गुल होगी तो ये तारे भी छुप जाएँगे क्या
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गरचे हैं मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार तग-ओ-दौ में सही
पर तिरी तब्अ को कब राह पे ला सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मूनिस-ए-ग़म है हमारा सो कहाँ मुमकिन है
तुझ को देखें तो तिरे हिज्र को रुख़्सत कर दें