aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'shamsii'"
लहू में ग़र्क़ हैं और शश-जहात का आहंगज़मीं की पेंग तुलू-ए-नुजूम-ओ-शम्स-ओ-क़मर
रात के गहरे सन्नाटे मेंमैं घर के आँगन में तन्हा
बहुत दिनों से मुझे इंतिज़ार है लेकिनतुम्हारे शहर से कोई यहाँ नहीं आया
सब कुछ है अपने देस में रोटी नहीं तो क्यावा'दा लपेट लो जो लंगोटी नहीं तो क्या
अन-गिनत शम्सी-निज़ामों के बखेड़ों से अगरइक ज़रा फ़ुर्सत मिले तो
हर नए पुराने कोदे ख़ुदा न 'शम्सी' को
अपने साए से भी घबराएँगेएक पल चैन नहीं पाएँगे
जन्मों की कहानी दोहराते दोहरातेनिज़ाम-ए-शम्सी के दाएरे से
मुस्तक़बिल की झोली में हम गिरते रहेंगेदाना दाना
सुनहरे ख़्वाबों की वादी में मुद्दतों हम नेकई मकान बसाए कई मकीं बदले
दर्द की साअतों से घबरा करफ़ाइलों से दिलों को बहला कर
आदमियों के इस मैले मेंवक़्त की उँगली पकड़े पकड़े
इशरत-ए-दहर से वाक़िफ़ भी था बेगाना भीतेरी शाही में थी इक शान-ए-फ़क़ीराना भी
खिड़की के शीशे से छन करकमरे में आ जाती है
मौत की पुर-सुकूत बस्ती कोदे के इक ज़िंदगी का नज़राना
शहर के हस्पताल में उस कोएक हफ़्ता हुआ है आए हुए
अन-गिनत शमसी निज़ामों के जहाँ से निकलाआख़िर-ए-कार वो इस कार-ए-गराँ से निकला
है अनोखा सब का सब शमसी निज़ामसोचिए कितना है ऊँचा रब का नाम
निज़ाम-ए-शम्सी तरतीब देते हुएतुझे मरकज़ में रहने देना मेरी भूल तो नहीं
पीठों पे हवा-ए-शम्सी मारती है दुर्रे...दूरी हरकत में आते हैं साकित कुर्रे
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