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नज़्म
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे
यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उफ़ वो वारफ़्तगी-ए-शौक़ में इक वहम-ए-लतीफ़
कपकपाए हुए होंटों पे नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कुछ तबले खड़कें रंग-भरे कुछ ऐश के दम मुँह-चंग भरे
कुछ घुंघरू ताल छनकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पल दो पल के ऐश की ख़ातिर क्या देना क्या झुकना
आख़िर सब को है मर जाना सच ही लिखते जाना
हबीब जालिब
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने