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नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कटी हुई हैं उँगलियाँ रुबाब ढूँढता हूँ मैं
जिन्हें सहर निगल गई वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
तेरी नज़र में हैं तमाम मेरे गुज़िश्ता रोज़ ओ शब
मुझ को ख़बर न थी कि है इल्म-ए-नख़ील बे-रुतब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ब-रब्ब-ए-काबा उस की याद में उम्रें गँवा दूँगा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़
रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना