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नज़्म
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब साज़-ए-अज़ल की फ़ुग़ाँ
जिस से दिखाती है ज़ात ज़ेर-ओ-बम-ए-मुम्किनात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उड़ा ली क़ुमरियों ने तूतियों ने अंदलीबों ने
चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं उस लड़के से कहता हूँ वो शोला मर चुका जिस ने
कभी चाहा था इक ख़ाशाक-ए-आलम फूँक डालेगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वो इक मिज़राब है और छेड़ सकती है रग-ए-जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन फूँक सकती है गुलिस्ताँ को
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ख़ुश हूँ फूँक दे कोई इस तख़्त-ओ-ताज को
तुम ही नहीं तो आग लगा दूँगी राज को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अब तक असर में डूबी नाक़ूस की फ़ुग़ाँ है
फ़िरदौस-ए-गोश अब तक कैफ़िय्यत-ए-अज़ाँ है