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नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं रोज़-ओ-शब निगारिश-कोश ख़ुद अपने अदम का हूँ
मैं अपना आदमी हरगिज़ नहीं लौह-ओ-क़लम का हूँ
जौन एलिया
नज़्म
लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़