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नज़्म
नीले पर्बत ऊदी धरती, चारों कूट में तू ही तू
तुझ से अपने जी की ख़ल्वत तुझ से मन का मेला है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
देखो हम ने कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
होंट तबस्सुम के आदी हैं वर्ना रूह में ज़हर-आगीं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अदा-ए-हुस्न बर्क़-पाश शोला-ज़न नज़ारा-सोज़
फ़ज़ा-ए-हुस्न ऊदी ऊदी बिजलियाँ लिए हुए