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नज़्म
حريف اپنا سمجھ رہے ہيں مجھے خدايان خانقاہي
انھيں يہ ڈر ہے کہ ميرے نالوں سے شق نہ ہو سنگ آستانہ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है तवाफ़ अब भी जारी तिरे आस्ताँ का लेकिन
नहीं मिल सका जबीं को तिरा संग-ए-आस्ताना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बयाबान-ए-मोहब्बत दश्त-ए-ग़ुर्बत भी वतन भी है
ये वीराना क़फ़स भी आशियाना भी चमन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे