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नज़्म
रुकी रुकी दिल-ए-फ़ितरत की धड़कनें यक-लख़्त
ये रंग-ए-शाम कि गर्दिश ही आसमाँ में नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
کيا زميں، کيا مہر و مہ، کيا آسمان تو بتو
ديکھ ليں گے اپني آنکھوں سے تماشا غرب و شرق
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इतने ऊँचे आसमान के तारे तोड़ के ला सकता हूँ
मेरी उम्र तो बस ऐसे ही खेल दिखाते गुज़री है