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नज़्म
इख़तिलाफ़-ए-दीन-ओ-मिल्लत के ये झगड़े हों तमाम
जो मुसीबत बन गए हैं आज बहर-ए-ख़ास-ओ-आम
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
तेरा दिल है ज़ंग-आलूदा मगर चेहरा है साफ़
तेरे ज़ाहिर और बातिन में है कितना इख़्तिलाफ़
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
हम ने माना आप का आपस में है कुछ इख़्तिलाफ़
इक जगह हम बैठ कर कर लें न क्यूँ दिल अपने साफ़
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
ज़मीं पे आसमाँ नहीं ये ज़ुल्म का ग़िलाफ़ है
हमें ये ज़ुल्म में अटी फ़ज़ा से इख़्तिलाफ़ है